जसोल (बाड़मेर ) -राम कथा का छठे दिन लक्षमण व परशुराम के बीच हुए संवाद को बताते हुए जनकपुरी के बारे बताया इतिहास साक्षी हैं जब कही भी मानव जाति पर संकट आया वह सत्ता के द्वारा आया ,सत्ता के लिए लाया गया , सत्ता के कारण आया हैं |
एक क्षण का सत्संग हमारे अनेक संचित पापों का नाश कर देता हैं मुरलीधर महाराज नें श्री राणी भटीयाणी मंदिर संस्थान की और से मंदिर प्रांगण में आयोजित हो रही राम कथा में वाचन करते हुए की बात की मनुष्य जीवन का चरम लक्ष्य तो मोक्ष हैं ,राम से बडा तो राम का नाम है जिससे प्रभाव से भक्त हरि के अधीन हो जाते हैं | राम व सीता के मिलाप में नेञो को चकोर व स्वरूप को चन्द्र बताया | धर्म एक पवित्र प्रवाह हैं जिसके स्पर्श माञ से रोम रोम रोमांचित होकर अन्त ः करण शीतल व निर्मल हो जाता है |
हमे वैचारिक नही व्यवहारिक पुरूष बनना चाहिए ,भगवान को यदि देना है तो अपना मन दो ,जिस प्रकार दुध की हर बुंदेलखंड में घी विधमान लेकिन दिखाई नही देती हैं ठीक उसी प्रकार इस सृष्टि के कण कण में भगवान का विधमान हैं परन्तु दिखाई नही देता हैं | मनुष्य को अवसर बार बार नही मिलता हैं उसका उपयोग करना चाहिए | जावे सो दिन वापस नही आते हैं | धर्म के चार भाग हैं उसमें दान का महत्व ज्यादा हैं ,गंगा का स्नान करना चाहिए राजा भगीरथ अपने पुर्वजों का उद्दार करने के लिए लाये थे | जीवन का मोह छोडना चाहिए |
कथा में गुलाबसिंह , देवीसिंह , पर्बतसिंह , बंशीलाल परमार ,शोभसिंह , उदाराम सुथार , हेमाराम प्रजापत , जेठूसिंह , गंगाराम , भूराराम मेघवाल ,बाबुदास वैष्णव सहित श्रोता उपस्थित थे |