बालोतरा – यदि जीवन के बाद के स्वर्ग की कल्पना को भी सत्य माने तो वह भी गाय के बिना संभव नहीं, क्योंकि स्वर्ग प्रदान करने वाले धर्मग्रंथ चाहे वेद हों या गीता, उनका आदि ज्ञान गाय की छत्र-छाया में ही प्राप्त हुआ है। ये उद्गार जूना अखाड़ा में अंतराष्ट्रीय महामंत्री व कनाना श्री मठ के महंत परशुराम गिरी महाराज ने गों सेवा व उनके ने सरंक्षण के निमित्त अन्नपूर्णा गोशाला प्रांगण में गो हितार्थ भागवत कथा के समापन की पूर्व संध्या में आयोजित हुए कार्यक्रम में कहे ।
उन्होंने बताया कि आज हम गाय की करुण पुकार को मूकदर्शक बन कर सुन रहे है, जबकि हम सभी जानते हैं कि गाय हैं तो हम भी हैं। अन्यथा यह कटु सत्य है। अत: हमें अपने आपको बचाना है, तो गाय को पहले बचाना होगा।भारतीय संस्कृति में गाय का महत्व, गायत्री गंगा और गीता से भी बढ़कर है, क्योंकि गायत्री की साधना में कठिन तपस्या अपेक्षित हैं, गंगा के सेवन के लिये भी कुछ त्याग करना ही पड़ता है और गीता को जितनी बार पढ़ोगे उसमें हर बार कुछ न कुछ नया मिलता है, जिसका रहस्य समझना कठिन है, लेकिन गौ का लाभ तो घर बैठे ही मिल जाता है। वेदों का कथन है कि यदि किसी को इस माया राज्य में सब प्रकार का वैभव प्राप्त करना है तो गौ माता की प्रमुख रूप से सेवा करें। गौ का गौरव इतना महान होते हुए भी हम लोग समझ नहीं पा रहे हैं और खेद की बात है कि भारत वर्ष में गोवंश पर आज भी अत्याचार हो रहा है। सरकारी सहायता से पशु-वधशालाएँ चलायी जा रही हैं, जो सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए शर्म की बात है। पता नहीं मेरी इस भारत माता के माथे से गोहत्या का कलंक कब मिटेगा।कितने शर्म की बात है कि स्वतंत्र भारत में मांस के लिए गोवंश को निर्दयता से काटा जाता है । वर्तमान में नरेंद्र मोदी सरकार को गाय माता के लिए कुछ करना चाहिए । गाय हैं तो सनातन संस्कृति हैं हिंदुत्व हैं नही तो जीना भी सार्थक नही होगा।