अगर परिवार सुखी नहीं होगा तो कोई भी सुखी नहीं रह पाएगा। उन्होंने कहा कि परिवार संस्कारों से चलते हैं। जैसा वातावरण हम घर परिवार का बनाएंगे वैसे ही संस्कार हमारे पुत्र- पुत्रियों व परिवार के अन्य सदस्यों में आएंगे। उन्होंने कहा कि हमारे परिवारों की सफलता को विदेशी भी पढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि ये चिंता का विषय है कि जहां विदेशी लोग हमारी संस्कृति को अपना रहे हैं, वहीं हम पाश्चात्य संस्कृति को अपनाने की ओर बढ़ रहे हैं। दुधेश्वर मठ गाजियाबाद महंत श्री नारायण गिरी जी महाराज ने कहा कि भोगवाद की अंधी दौड़ में मनुष्य अपनी संस्कृति व संस्कारों से दूर होता जा रहा है। हमें परिवार में रहकर सभ्यता, संस्कृति, ज्ञान व आध्यात्म, एकजुटता, अपनापन, सेवा, समर्पण की सीख मिलती है। उन्होंने कहा कि हर मानव के जीवन में पहला शब्द मां ही होता है। मां अपने हर बच्चे का प्रेम से संरक्षण करती है।
मां का प्रेम व पिता का संरक्षण भाव ही बेटे- बेटियों का आगे बढ़ने का हौसला प्रदान करते है। श्री राणी भटियाणी मन्दिर संस्थान अध्यक्ष रावल किशनसिंह जसोल ने कहा कि असफलता प्राप्त होने पर किसी प्रकार का गलत कदम नहीं उठाना चाहिए। परिवार ही होता है जो हमें ये सीख देता है । जीवन में कई अवसर मिलेंगे। जाति व वर्ण की उत्पत्ति उनके द्वारा किए जाने वाले कार्य व कर्म से होती है। जिस प्रकार एक मां के लिए सभी संतान एक समान होती है, उसी प्रकार मां भारती की सभी संतानें चाहे किसी भी कार्य या वर्ग से संबंध रखती हो, वो एक समान है। घर परिवार व समाज का माहौल ही एक अच्छा नागरिक तैयार करता है। इस अवसर पर रूपचंद सालेचा, डॉ जी आर भील, मांग सिंह जागसा, गुलाब सिंह डंडाली, लाल सिंह असाड़ा, मोहन भाई पंजाबी, अशोक रंगवाला, रामकिशन महारतन वाले, नरेंद्र गोलेछा, माणकचंद, बालक राम सुथार, अशोक प्रजापत, सांवतराज सोनी, मुल्तानमल माली, सरदारमल, बजरंगसिंह, अशोक हुंडिया, देवेन्द्र कुमार, कन्हैयालाल टावरी, अमृतलाल पालीवाल, सोहनलाल दर्जी, चुन्नी लाल, सुरंगीलाल सालेचा, सागर मल, नारायण राम पालीवाल, पदमाराम, वीराराम तीरगर, मांगीलाल गौड़, रूपाराम ढोली, भरत कुमार नाई, प्रतापजी लोहार, उदाराम प्रजापत, सुजाराम सुंदेशा, रूपाराम माली, ओमजी घांची, बाबूलाल पालीवाल जसोल व बालोतरा के सर्व समाज के प्रमुख जन उपस्थित रहे।