वैदिक मंत्रोच्चार के साथ खुले जसोलधाम के कपाट
रावल मल्लीनाथ गौशाला में हुई गोवर्धन पूजा
जसोल- दीपावली के महा पर्व पर इस वर्ष के लगे अंतिम सूर्य ग्रहण पर मंगलवार को जसोलधाम के कपाट श्रदालुओं के लिए बंद रहे। प्रतिदिन मन्दिर परिसर श्रदालुओं की आवाजाही के चलते मेले सा रहने वाला सुनसान नजर आया। बुधवार को पंडितो के द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार के साथ माँ की प्रतिमा सहित श्री लाल बन्नासा, श्री सवाई सिंह जी, श्री बायोसा, श्री खेतलाजी व श्री भेरुजी की प्रतिमाओं का श्रृंगार किया गया। जिसके बाद आरती के साथ श्रदालुओं के लिए मन्दिर के द्वार खोल दिए गए। साथ ही मन्दिर संस्थान द्वारा प्रातःकालीन आरती के समय में बदलाव किया गया जो अब 6 बजे होगी।
मल्लीनाथ गोशाला में हुई गोवर्धन पूजा -
श्री मल्लीनाथ गौशाला समिति अध्यक्ष रावल किशनसिंह जसोल ने गोवर्धन पूजा की। सनातन धर्म में गोवर्धन पूजा का बहुत बड़ा महत्व है। यह मुख्य रूप से भगवान कृष्ण की बचपन की कहानियों को याद करने के लिए मनाया जाता है।
संस्थान अध्यक्ष रावल किशनसिंह जसोल ने कहा कि मल्लीनाथ गोशाला में 543 गोवंश है। लेकिन गोवंश में फैली लंपि नामक बीमारी से किसी भी एक गोवंश की मौत नही हुई हैं। यह श्री रावल मल्लीनाथ जी का आशीर्वाद हैं। इस दौरान उन्होंने कहा कि गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई है। इसमें घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन नाथ जी की अल्पना बनाकर उनका पूजन किया जाता है। उन्होंने कहा कि इस पूजा में गोवर्धन पर्वत, गोधन यानि गाय और भगवान श्री कृष्ण की पूजा का विशेष महत्व है इसके साथ ही वरुण देव, इंद्र देव और अग्नि देव देवताओं की पूजा का भी विधान है। रावल किशनसिंह ने कहा कि गायों को देवी लक्ष्मी का रूप कहा जाता है। जिस प्रकार देवी लक्ष्मी अपने सभी भक्तों पर सुख-समृद्धि फैलाती हैं, उसी प्रकार गाय अपने दूध से हमें स्वस्थ जीवन प्रदान करती हैं। गोवर्धन पूजा मुख्य रूप से गायों के प्रति सम्मान और आस्था दिखाने के लिए मनाई जाती है।