जैसलमेर/पोकरण: राजस्थान के तपते रेगिस्तान में जहां जीवन कठिनाइयों से भरा होता है, वहीं एक व्यक्ति – राधेश्याम बिश्नोई – अपने समर्पण और निस्वार्थ भावना से प्रकृति की एक अनमोल धरोहर, “ग्रेट इंडियन बस्टर्ड” (गोडावण) की रक्षा कर रहे हैं। एक ऐसा पक्षी जो विलुप्ति के कगार पर है, उसकी रक्षा के लिए राधेश्याम ने अपना जीवन समर्पित कर दिया है।

गोडावण: एक संकटग्रस्त पक्षी
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, जिसे स्थानीय भाषा में गोडावण कहा जाता है, एक समय भारत के 11 राज्यों में देखा जाता था। आज यह केवल राजस्थान के सीमित क्षेत्रों, विशेष रूप से जैसलमेर और उसके आसपास के इलाकों तक सिमट कर रह गया है। 1960 के दशक में इनकी संख्या 1000 से अधिक थी, लेकिन अब यह घटकर महज 150 से भी कम रह गई है।
इस पक्षी की सबसे बड़ी चुनौती है – बिजली की हाई वोल्टेज तारें। खुले रेगिस्तानी क्षेत्रों में उड़ान भरते समय गोडावण अक्सर इन तारों से टकरा जाते हैं, जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है। साथ ही, अवैध शिकार और तेजी से घटता प्राकृतिक आवास भी इनके लिए गंभीर खतरा हैं।
राधेश्याम बिश्नोई – एक सच्चे संरक्षक
राधेश्याम बिश्नोई, जो जैसलमेर जिले के रहने वाले हैं, ने बहुत कम उम्र से ही घायल पक्षियों और वन्यजीवों की देखभाल शुरू कर दी थी। उनकी संवेदनशीलता और सेवा-भावना ने उन्हें जोधपुर के वन्यजीव रेस्क्यू सेंटर तक पहुंचाया, जहाँ उन्होंने वेटरनरी असिस्टेंट का प्रशिक्षण प्राप्त किया।
आज राधेश्याम न केवल गोडावण, बल्कि चिंकारा, नीलगाय, हिमालयन गिद्ध और अन्य संकटग्रस्त जीवों की भी देखभाल करते हैं। उन्होंने कई बार जंगलों में घूमकर घायल पक्षियों को बचाया और उनका उपचार किया। वे ग्रामीणों को भी वन्यजीवों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए जागरूकता फैलाते हैं।
गोडावण प्रजनन केंद्र: एक नई उम्मीद

राधेश्याम के प्रयासों से प्रेरित होकर जैसलमेर जिले के पोकरण क्षेत्र के पास रामदेवरा में एक गोडावण प्रजनन केंद्र की स्थापना की गई है। वर्तमान में यहाँ 22 गोडावण सुरक्षित वातावरण में पाले जा रहे हैं। यह केंद्र इस दुर्लभ पक्षी की आबादी बढ़ाने की दिशा में एक क्रांतिकारी पहल मानी जा रही है।
गोडावण का महत्व और किसानों से जुड़ाव
गोडावण न केवल जैव विविधता की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह किसानों का मित्र भी है। यह कीटों, सरिसृपों और टिड्डियों को खाकर खेतों को नुकसान से बचाता है। इसलिए राधेश्याम गांव-गांव जाकर किसानों को समझाते हैं कि गोडावण को मारना नहीं, बल्कि बचाना चाहिए।
समर्पण और सेवा का प्रतीक
राधेश्याम की कहानी हमें यह सिखाती है कि एक व्यक्ति भी प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा में बड़ा बदलाव ला सकता है। बिना किसी सरकारी नौकरी या संसाधन के, उन्होंने गोडावण जैसे संकटग्रस्त पक्षी के संरक्षण के लिए वह कर दिखाया जो कई संस्थाएं नहीं कर पाईं।
सरकार और समाज से अपील
राधेश्याम यह अपील करते हैं कि सरकार हाई वोल्टेज बिजली की लाइनों को भूमिगत करे और ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को वन्यजीवों के महत्व के बारे में जागरूक करे। साथ ही, समाज के हर वर्ग को इस अभियान से जुड़कर जैव विविधता की रक्षा में अपनी भूमिका निभानी चाहिए।

निष्कर्ष:
रेगिस्तान की तपती रेत में राधेश्याम बिश्नोई जैसे लोग उम्मीद की छांव हैं। उनका जीवन हमें यह संदेश देता है कि प्रकृति की रक्षा सिर्फ नीतियों से नहीं, बल्कि दिल से होती है। गोडावण को बचाना केवल एक पक्षी को बचाना नहीं है, बल्कि भारत की वन्य धरोहर को सहेजना है।